Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 45
________________ जालिहरगच्छ का संक्षिप्त इतिहास अभिलेखीय साक्ष्य-जैसा कि प्रारम्भ में ही कहा गया है, जालि. हरगच्छ से सम्बद्ध ८ प्रतिमालेख मिलते हैं। इनमें से सर्वप्रथम अभिलेख वि० सं० १२१३/ई० सन् ११५७ का है । लेख इस प्रकार है सं० [0] १२१३ वैशाख वदि ५ जोराउद्रग्रामे श्रीवीसिवदेव्या श्रीजाल्योधरगच्छे । प्रतिष्ठास्थान-जैन मंदिर, अजारी मुनि जयन्तविजय-अबुंदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखाङ्क ४०८। यद्यपि उक्त लेख में जालिहरगच्छ के किसी आचार्य का उल्लेख नहीं है, फिर भी इस गच्छ का उल्लेख करने वाला सर्वप्रथम साक्ष्य होने के कारण यह महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है । इस गच्छ से सम्बद्ध द्वितीय लेख वि० सं० १२९६/ई० सन् १२४० का है, जो भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है।' इस लेख में जालिहरगच्छीय देवसूरि के शिष्य हरिभद्रसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में उल्लेख है। देवसूरि हरिभद्रसूरि [वि०सं० १२९६/ई० सन् १२४० में नेमि नाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक] जालिहरगच्छ से सम्बद्ध तृतीय लेख वि० सं० १३३१ / ई० सन् १२७५ का है। यह लेख सलखणपुर स्थित जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है। इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में हरिप्रभसूरि का उल्लेख है। १. सोमपुरा, कान्तिलाल फूलचन्द-"घोघाना अप्रकट प्रतिमा लेखो" श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव अंक (बम्बई १९६५ ई०) भाग १, पृ० १११-११७ २. मुनि जिनविजय-संपा० प्राचीनजनलेखसंग्रह भाग २ (भावनगर १९२१ ई०) लेखांक ४८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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