Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 48
________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ धर्मघोषसूरि देवसूरि [वि० सं० १२५४/ई० सन् ११९४ पद्मप्रभचरित के रचनाकार हरिभद्रसूरि चन्द्रसूरि हरिप्रभसूरि [वि० सं० १३३१-५९] प्रतिमालेख विबुधप्रभसूरि [वि० सं० १३९३ प्रतिमालेख] ललितप्रभसूरि [ वि० सं० १४२३ / ई० सन् १३६७] प्रतिमा लेख उक्त साक्ष्यों के आधार पर विक्रम की तेरहवीं शती के प्रारम्भ से १५वीं शती के प्रथमचरण तक इस गच्छ का अस्तित्व सिद्ध होता है। जहां अन्य गच्छों से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्रचुरता से उपलब्ध होते हैं, वहीं इस गच्छ से सम्बद्ध साक्ष्यों की विरलता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्य गच्छों की अपेक्षा इस गच्छ के मुनिजनों और श्रावकों की संख्या अल्प थी। १५वीं शती के द्वितीय चरण से इस गच्छ से सम्बद्ध कोई भी साक्ष्य नहीं मिला है, अतः यह माना जा सकता है कि इस गच्छ के मुनिजन और उपासक किन्हीं अन्य गच्छ में सम्मिलित हो गये होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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