Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास सव्वत्थोवो दंसणमोहउवसामयस्स गुणसे डिगुणो। संजदासंजदस्स गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो। अधापवत्तसंजदस्स गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो। अणंताणुबंधी विसंजोएं तस्स गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो । दसणमोहखवगस्स गणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो। कसाय उवसामगस्स गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो । उवसंतकसाय-वीयरायछदुमत्थस्स गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो। कसायखवगस्स गुणसेडिगुणो असंखेज्जगुणो। खीणकसाय-वीयराय छदुमत्थस्स गुणसे डिगणो असंखेज्जगुणो । आधापवत्तके वलि संजलदस्स* गुणसे डिग्णो असंखेज्जगुणो। जोगणिरोधकेवलिसंजलदस्स* गुणसे डिगुणो असंखेज्जगुणो। -----षट्खण्डागम, संपादक -- ब्र० पं० सुमतिबाई शहा, न्यायतीर्थ ४, २. ७, १७५-१८५ षट्खण्गागम के इन सूत्रों में दिये गये नामों से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनमें गाथाओं में प्रयुक्त मूल शब्दों को अधिक स्पष्ट किया गया है। सम्यक्त्व उत्पत्ति के स्थान पर दर्शनमोह उपशमक शब्द का प्रयोग किया गया है जो उसे अधिक स्पष्ट कर देता है। इसी प्रकार श्रावक के स्थान पर संयतासंयत शब्द का प्रयोग हुआ है। हम यह देखते हैं कि बाद में भी गुणस्थान सिद्धान्त में श्रावक शब्द का प्रयोग न होकर देशविरत. संयतासंयत या विरताविरत जैसे शब्दों का ही प्रयोग हुआ है। इसीप्रकार तीसरे क्रम पर विरत के स्थान पर अधःप्रवृत्तसंयत या यथाप्रवृत्तसंयत शब्द का प्रयोग हुआ है जो अपने में एक विशेषता रखता है। चौथे क्रम में जहाँ मूल गाथा में 'अणंतकम्मसे' शब्द है वहाँ व्याख्यासूत्र में अनन्तानुबंधी विसंयोजक शब्द का प्रयोग हुआ है जो कि अधिक स्पष्ट है। पाँचवें और छठे क्रम के शब्द मूल गाथाओं और व्याख्या दोनों में समान हैं, सातवें क्रम पर जहाँ गाथा में केवल 'उपशान्त' शब्द है वहाँ व्याख्यासूत्रों में 'उपशान्तकषायवीतरागछद्मस्थ' शब्द दिया गया है। इसी प्रकार आठवें क्रम पर क्षपक के स्थान पर कषायक्षपक दिया गया है । नवें क्रम पर * मूल पाठ में 'ल' अक्षर अधिक लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88