Book Title: Sramana 1992 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ चेतनप्रयत्न के बिना केवल पुद्गल स्कन्धों के संघर्ष से जन्य शब्द को 'वैससिक' कहते हैं । जैसे--मेघध्वनि आदि । प्रायोगिक के दो भेद हैं शब्द - प्रायोगिक (चेतनप्रयत्नजन्य शब्द) वैस्रसिक (बिना चेतन प्रयत्नजन्य शब्द) (सभी अभाषात्मक) (मेघध्वनि आदि) भाषात्मक अभाषात्मक (वीणा आदि के शब्द प्रायोगिक होने से इन्हें भाषा के रूप में परिणत किया जा सकता है) अक्षरात्मक (मनुष्यों की संस्कृतादि भाषायें अनक्षरात्मक (द्वीन्द्रियादि की बोलियां और जीवन्मुक्त केवली की दिव्यध्वनि) - तत वितत घन सुषिर संघर्ष (चमड़ें से मढ़े (तार वाले (आघातजन्य (फूंक से (घर्षण से हुए वाद्यों वाद्यों के शब्द) जन्य शब्द) जन्य शब्द) के शब्द) शब्द) घण्टा शंख ढोल सारंगी, वीणा अन्य प्रकार शब्दों के अन्य प्रकार से निम्न तीन भेद किए गए हैं. झांझ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88