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श्रमण, अप्रैल-जून १९९२
तत्त्वार्थसूत्र के बीजों की खोज में उन्होंने षट्खण्डागम के जो सूत्र दिये हैं वे प्रकाशित ग्रन्थ के आधार पर नहीं हैं, क्योंकि उस समय तक षट्खण्डागम का प्रकाशन नहीं हुआ था । जैसा कि उनकी टिप्पणी से ज्ञात होता है, उन्होंने ये सारे सूत्र पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार की धवला आदि के परिचय की नोट बुक से लिये थे उन्होंने इन सूत्रों का क्रम २१८ से २२५ बताया है जबकि प्रकाशित षट्खण्डागम' में ये सूत्र चतुर्थ वेदना खण्ड के दुसरे वेदना अनुयोगद्वार के सातवें वेदनभाव विधान की प्रथम चूलिका के सूत्र संख्या १७५-१८५ तक पाये जाते हैं।
सूत्र संख्या के इस महत्वपूर्ण अन्तर से एक विचार यह आता है कि क्या हस्तप्रत में जो सुत्र मिले थे और उन्हे जो क्रम दिया गया था, उन्हें बदल दिया गया है या जिस प्रकार प्रथम सत्प्ररूपणा खण्ड में संयत पद हटा दिया गया था, उसी तरह से कुछ सूत्र जो दिगम्बर परम्परा के अनुकूल नहीं बैठते थे बे हटा दिये गये। काश सम्प्रदाय निरपेक्ष दृष्टि से मूल हस्तप्रतों से प्रकाशित षट्खण्डागम का मिलान कर यथार्थ स्थिति को समझने का प्रयास किया जाय, तो उत्तम होगा।
मेरी यह भी स्पष्ट अवधारणा है कि ये चूलिकासूत्र और उसमें दी गई मूल गाथा ग्रन्थ में बाद में जोड़ी गई है, चाहे उसे स्वयं ग्रन्थकार ने ही जोड़ा हो। साथ ही ये दोनों गाथायें षटखण्डागम की रचना से प्राचीन हैं। भले ही इसकी व्याख्या के रूप में जो सूत्र दिये गये हैं वे षट्खण्डागम के अपने हो सकते हैं। ये गाथाएँ या तो नियुक्ति से या संग्रहणी गाथाओं से ही ली गई होंगी। फिर मैं इन गाथाओं के प्राचीन मूल स्रोत की खोज में लगा और मैंने पाया कि ये दोनों गाथायें आचारांग नियुक्ति में उसके चौथे अध्ययन की नियुक्ति के रूप में हैं। मुझे इनका अन्य कोई प्राचीन स्रोत प्राप्त होगा तो मैं पाठकों को अवश्य सूचित करूँगा । यद्यपि अभी तक आचारांग नियुक्ति से प्राचीन इनका अन्य कोई स्रोत उपलब्ध नहीं हो सका है। आचारांग नियुक्ति
और षट्खण्डागम के वेदना खण्ड की चूलिका की ये गाथायें एक 'कसाय' शब्द को छोड़कर शब्दशः समान हैं । अतः सम्भावना यही है कि १. षट्खण्डागम सं०
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