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नियुक्तिकार पू० श्रीभद्रबाहुस्वामी महाराज ने 'श्री आवश्यक सूत्र' की नियुक्ति में अरिहंत के बारे में कहा है कि"इन्दिय विसय कषाये, परिषहे वेयरणा उवसग्गे । ए ए अरिणो हता, अरिहंता तेण वुच्चंति ॥ अटुविहं पि य कम्मं, अरिभूयं होइ सव्व जीवाणं । तं कम्ममरिहंता, अरिहंता तेग वुच्चंति ॥ अरिहंति वंदरण नमसणारिण अरिहंति पूय सक्कारं । सिद्धिगमरणं च अरिहा, अरिहंता तेरण वुच्चंति ॥ देवासुरमणुए सुय, अरिहा पूया सुरुत्तमा जम्हा ।
अरिगो हंता अरिहंता, अरिहंता तेरण वुच्चंति ॥" . जो इन्द्रियों के विषयों, कषायों, परीषहों और वेदनाओं का विनाश करने वाले हों वे अरिहंत-अर्हत् कहलाते हैं । जो सब जीवों के शत्रुभूत उत्तर प्रकृतियों से युक्त आठ कर्मों का विनाश करने वाले हों वे अरिहंत-अर्हत् कहलाते हैं । जो वन्दन, नमस्कार, पूजा और सत्कार के योग्य हों, मोक्षगमन के लायक हों, सुरासुरनरवासव से पूजित हों तथा अभ्यन्तर शत्रु ओं का विनाश करने वाले हों वे अरिहंत-अर्हत् कहलाते हैं ।
पू० श्रीमद् जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणजी महाराज भी
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६