Book Title: Siddhachakra Navpad Swarup Darshan
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 500
________________ संघवी श्री देवीचन्द श्रीचन्दजी की ओर से 'श्री भक्तामरपूजन' विधि"पूर्वक पढ़ाई गई । (८) महा सुद १ ( दूसरी ) शुक्रवार दिनांक ३-२-८४ को च्यवन कल्याणक की विधि हुई । प्रभुजी के पिता एवं माता बनने का आदेश लेने वाले शा० भेरूमल मूलचन्दजी के घर गाजे-बाजे सहित परमपूज्य प्राचार्य म० सा० चतुर्विध संघ सहित पधारे । वहाँ पूज्य प्राचार्य म० श्री के सदुपदेश से शा० भेरूमलजी आदि ने श्रीसिद्धाचलजी महातीर्थ की ६६ यात्रा कराने की प्रतिज्ञा की । ज्ञानपूजन एवं मंगल प्रवचन के पश्चात् प्रभावना हुई ! उसी दिन शा० कपूरचन्द चमनाजी के घर पर भी पूज्य गुरुदेव चतुविध संघ सहित पधारे। वहां पर भी पूज्य श्रीजी के सदुपदेश से शा० कपूरचन्दजी ने संघ निकालने की प्रतिज्ञा की । ज्ञानपूजन एवं मंगल प्रवचन के बाद प्रभावना हुई । रथ - इन्द्रध्वज - हाथी-घोड़े बेन्डयुक्त च्यवनकल्याणक का वरघोड़ा निकला । शा० रकबीचन्दजी खीमराजजी की ओर से प्रभावना सहित पूजा पढ़ाई गई तथा शा० कपूरचन्द हजारीमल चमनाजी की तरफ से नोकारसी हुई । शा० ( 8 ) महा सुद २ शनिवार दिनांक ४-३-८४ को जन्म कल्याणक विधान में छप्पन दिग्कुमारियों का महोत्सव, इन्द्रसिंहासन कंपन तथा शक्रेन्द्र की स्तुति का कार्यक्रम हुआ । भूरमलजी तलसाजी की तरफ से प्रभावना युक्त पूजा पढाई गई तथा शा० आईदानजी प्रतापचन्दजी की ओर से नोकारसी हुई । (१०) महा सुद ३ रविवार दिनांक ५ - २ - ८४ को मेरुपर्वत पर २५० अभिषेक, पुत्र - जन्म - वधामणी, नाम स्थापना तथा पाठशालादि का कार्यक्रम रहा । जन्मकल्याणक का वरघोड़ा निकला । शा० गुलाबचन्द फूलचन्द रुघनाथजी की ओर से प्रभावना सहित पूजा पढ़ाई गई । नोकारसी शा० हीराचन्दजी लखमाजी की तरफ से हुई । ( 111 )

Loading...

Page Navigation
1 ... 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510