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द्वारा आहार करने का जो अनादिकालीन स्वभाव आत्मा का है, उस पर तथा रसनेन्द्रिय पर इस अनशन तप से प्रति सुंदर नियंत्रण - कंट्रोल हो जाता है ।
(२) ऊनोदरिका तप - ऊन यानी न्यून कम और प्रौदरिका यानी उदरपूर्ति जो करनी, वह 'ऊनोदरिका तप' कहा जाता है । अर्थात् प्रमाण से भी न्यून अल्प आहार खुराक लेना वह ऊनोदरिका तप है । शास्त्र में कहा है कि---
बत्तीस किर कवला आहारो कुच्छिपूरो भरिणश्रो । पुरिसस्स महिलाए अट्ठावीसं भवे कवला ।। १ ।
कवलारण व परिमाणं, कुक्कडिअंडयपमारगमेत्तं तु । जो वा श्रविगयवयरणो वयरगम्मि छुहेज्ज विसत्थो ।। २ ।।
अर्थ - उदरपूर्ति के लिये पुरुष का प्रहार बत्तीस कवल ( कोळीया ) जितना कहा है तथा स्त्री का प्रहार अट्ठावीस कवल ( कोळीया ) जितना कहा है । उसमें कवल का प्रमाण कुकडी के इंडा जितना जानना । अथवा मुख का भाग विशेष पहोळा करया बिना आहार का कवल (कोळीया ) मुख में मूक समझना । (१-२ )
सरलता से सके इतना
इस ऊनोदरी तप के दो भेद हैं ।
द्रव्य ऊनोदरिका
श्रीसिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- २६५