Book Title: Siddhachakra Navpad Swarup Darshan
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 455
________________ जो होवे मुझ शक्ति इसी, सवि जीव करूं शासन रसी। शुचि रस ढलते तिहाँ बाँधता, तीर्थङ्कर नाम निकाचता ।। २ ॥ सराग थी संयम आचरी, वचमां एक देव नो भव करी । चवि पन्नर क्षेत्रे अवतरे, मध्य खण्डे पण राजवी घरे (कुले) ।३। पटराणी कूखे गुण नीलो, जेम मान सरोवर हंसलो। सुख शय्याये रजनी शेषे, उतरतां चउद सुपन देखे ॥ ४ ।। । ढाल-स्वप्न की । पहेले गजवर दीठो, बीजे वृषभ पइट्ठो । त्रीजे केसरी सिंह, चोथे लक्ष्मो अबीह ।। १ ।। पाँचमें फूलनी माला, छ? चन्द्र विशाला।। रवि रातो ध्वज म्होटो, पूरण कलश नहीं छोटो ।। २ ॥ . दशमें पद्म सरोवर, अग्यार में रत्नाकर। भुवन विमान रत्नगंजी, अग्निशिखा धूम वर्जी ॥ ३ ॥ स्वप्न लहि जई रायने भाषे, राजा अर्थ प्रकाशे । पुत्र तीर्थंकर त्रिभुवन नमशे, सकल मनोरथ फलशे ।। ४ ।। ॥ वस्तु छन्द ।। अवधिनाणे अवधिनाणे, ऊपना जिनराज । जगत जस परमाणुया, विस्तर्या विश्व जंतु सुखकार। मिथ्यात्व तारा निर्बला, धर्म उदय परभात सुन्दर । माता पण आनंदिया, जागती धर्म विधान । जाणंति जग तिलक समो, होशे पुत्र प्रधान ॥ १ ।। ॥ दोहा ।। शुभ लग्ने जिन जनमिया, नारकी मां सुख ज्योत । सुख पाम्या त्रिभुवन जना, हुप्रो जगत उद्योत ॥१॥ ( 66 )

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