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कि यह अन्न-पानादि अशुद्ध है अथवा ग्रहण किये हुए अन्न पानादि क्षेत्रातीत या कालातीत हैं अथवा सूर्योदय हो गया है अथवा अभी अस्त नहीं हुआ है, इस तरह समझकर अन्न-पानादि ग्रहण करने के बाद लगा कि सूर्योदय नही हुआ था या सूर्यास्त हो गया है इसलिये ग्रहण किये हुए उन अन्न-पानादिक का विधिपूर्वक जो त्याग करना, वह 'विवेक प्रायश्चित्त तप' कहा गया है। इसमें अकल्पनीय अन्न-पानादिक का शास्त्रोक्त विधिपूर्वक त्याग किया जाता है।
(५) कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त-कुस्वप्न, दुःस्वप्न इत्यादि देखने में आते, लगे हुए दोषों की शुद्धि कायोत्सर्ग मात्र से होती है। इसलिये उस निमित्ते किया जाने वाला जो काउस्सग्ग है उसे 'कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त तप' कहा जाता है। इसमें काया का व्यापार बन्द रखकर ध्यान किया जाता है।
(६) तप प्रायश्चित्त-जीवहिंसा आदि में लगे हुए दोष अंगे करने में आता हुआ नीवी प्रमुख का जो तप है वह 'तप प्रायश्चित्त तप' कहा गया है। इसमें किये हुए पाप-दोष के दण्डरूपे नीवी आदि कराते हैं।
(७) छेद प्रायश्चित्त-संयम-चारित्र में रह कर जिसने महाव्रत का भंग किया हो, जो तप करने में असमर्थ हो
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२७६