Book Title: Siddhachakra Navpad Swarup Darshan
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 432
________________ त्रण काल भावे पूजिये, भवतारक तीर्थंकरं। .. तिम गणणु दोय हजार गणीए, नमो नवपद जयकरं ।। ६ ।। विधि सहित मन वचन काया, वश करी आराधीए। तप वर्ष साडाचार नवपद, शुद्ध साधन साधीए ॥७ ।। गद कष्ट चूरे शर्म पूरे, यक्ष विमलेश्वर वरं । श्री सिद्धचक्र प्रताप जाणी, विजय विलसे सुखभरं ।।८।। चैत्यवंदन ६ सिद्ध सकल समरू सदा, अविचल अविनाशी। थाशे ने वली थाय छे, थया अड कर्म विनाशी ।। १ ।। लोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो। सिद्ध बुद्ध पारंगते, गुण थी नहीं अधूरो ॥ २ ॥ अनंत सिद्ध एणी परे नमुए, वलि अनंत अरिहंत । ज्ञान विमल गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत ।। ३ ।। चैत्यवंदन ७ जय जय तु जिनराज, आज मिलियो मुज स्वामी। अविनाशी अकलंक अरु, जग अंतरजामी ॥ १॥ रूपारूपी धर्म देव, आतम आरामी। चिदानंद है चितंद, शिव लीला पामी ।। २ ॥ सिद्ध बुद्ध तुम वंदताए, सकल सिद्ध पडिबुद्ध । आतमराम ध्याने करी, प्रगटे प्रातम रिद्ध ॥ ३ ॥ काल बहु थावर करिए, भमियो भव मांहीं । विगलेन्द्री माहे वस्यो, थिरता नहीं कांही ।। ४ ।। ( 43 )

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