Book Title: Siddhachakra Navpad Swarup Darshan
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir
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नमुत्थुणं, जावंति चेई ० खमासमरण देकर जावंत केवि नमोऽर्हत्, कहकर स्तवन कहना. बाद जयविय. प्राभवमखंडा. तक कहना बाद खमासमरण देकर इच्छा. चैत्य वंदन करूँ. ऐसा कहकर चैत्यवंदन कहे. बाद जंकिंचि० नमुत्थुणं. जयवि. सम्पूर्ण कहकर | खमासमरण देकर अविधि प्रशातना का मिच्छामि दुक्कडं देना. सुबह की वक्त हो तो खमासमरण देकर इच्छा. सज्झाय करू ऐसा कहकर एक नवकार गिनके मन्हजिरगाणं की सज्झाय कहना. बाद में नवकार नहीं कहना. सज्झाय करते वक्त उत्तरासरण निकाल देना. व खड़े पाँव से बैठना ।
मन्ह जिरणारगं की सज्झाय
मन्ह जिरणारणं रणं, मिच्छं परिहर धर सम्मतं । छव्विह प्रावस्सयंमि, उज्जुत्तो होई पई दिवसं ।। १ ।। पव्वेसु पोसह वयं, दारणं सिलं तवो भावो । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो अ जयगा ।। २ ।। जिरण पूजिरण थुणीरणं, गुरुथु साहम्मिप्रारण वच्छलं । ववहारस्य सुद्धि, रहजुत्ता तित्थ जुत्ताय ।। ३ ।।
उवसम विवेग संवर, भासा समिय छजीव करुरणाय । धम्मित्र जण संसग्गो, करण दमो चरण परिणामो ॥ ४ ॥
संघोवरि बहुमाणो, पुत्थय लिहणं पभावरणा तित्थं । सड्डारण किच्च मेप्रं, निच्चं सुगुरु वएसेणं ।। ५ ।।
पsिहरण विधि
पहले खमासमरण देकर इच्छा ० इरिया० तस्स उत्तरी अन्नत्थ कहकर एक लोगस्स या चार नवकार का काउसग्ग करके बाद
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