________________
श्री नवपद की संकलना
श्रीसिद्धचक्र के नौ पद हैं। इन नव पदों में प्रारम्भ के अरिहन्त और सिद्ध ये दोनों पद देवतत्त्व में आते हैं। पीछे के प्राचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीनों पद गुरुतत्त्व में आते हैं तथा अन्तिम दर्शन, ज्ञान और चारित्र ये तीनों पद धर्मतत्त्व में आते हैं।
नवपद की विधिपूर्वक सुन्दर साधना-आराधना के प्रभाव से साधक-पाराधक दुस्तर भवसिन्धु यानी संसारसागर को भी आसानी से शीघ्र तिर जाता है। इतना ही नहीं, किन्तु अनादि काल से लगे हुए कर्मों के बन्धन से भी सर्वथा मुक्त होकर मुक्ति-मोक्ष को पा जाता है। सादि अनंत स्थिति में सर्वदा वहाँ पर रहता है तथा शाश्वत अनंत सुख का भागी बनता है ।
___ अनंत उपकारी सर्वज्ञ विभु श्रीतीर्थंकर भगवन्तों द्वारा प्रतिपादित श्रीसिद्धचक्र के नव पदों की संकलना निम्नलिखित प्रकार से है
संसार में परिभ्रमण करने वाले बुद्धिशाली भव्यात्माओं का मुख्य साध्य कर्मबन्धन से मुक्त होना रहता है। श्रीनवपद पैकी पहले पद में बिराजे हुए श्रीअरिहन्त भगवन्तों का और दूसरे पद में बिराजे हुए सिद्ध भगवन्तों
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३२०