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(११) देह की तथा आहार की ममता को समाप्त करने के लिये 'महान् शस्त्र' तप है ।
(१२) उद्यापन यानी उजमणा तपधर्म का ही होता है, इसलिये जगत में 'श्रेष्ठ-उत्तम' तप है ।
(१३) शुभ साधना-आराधना का 'बीज-प्रोज' तप है।
(१४) कर्म-मल को दूर करने के लिये 'जल तुल्य' अर्थात् पानी के समान तप है।
(१५) विश्वभर का 'महान् औषध' तप है ।
(१६) जगत में सूर्य के समान अज्ञानरूपी अन्धकार को शमन करने से ज्ञानरूपी नेत्र को निर्मल करने वाला तथा तत्त्वातत्त्व की जानकारी दिखाने वाला तप है।
(१७) सम्यग्दृष्टियों में 'शुभ शिरोमणि' तप है । (१८) पालम में अपूर्व कोटि का धर्म तप है । (१६) उत्कृष्ट मंगलरूप तथा भावमंगलरूप भी तप है।
(२०) कर्मरूपी वृक्ष को मूल से उखाड़ने वाले 'गजराज-हाथी' के समान तप है।
(२१) इन्द्रियरूपी उन्मत्त अश्वों को काबू में अर्थात् वश में रखने के लिये 'लगाम' के समान तप है ।
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श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३०१