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की पाराधना भी श्याम-कृष्णवर्ण से होती है ।
(२) जैसे जैनशासन-साम्राज्य के महान् सम्राट् के समान श्री अरिहंतदेव हैं, राष्ट्रध्वज के समान श्री सिद्ध भगवन्त हैं, सेना-सैन्य के प्रधान अधिपति के समान श्री आचार्य महाराज हैं तथा नायक प्रधान के समान श्री उपाध्याय महाराज हैं, वैसे ही सैनिक के समान श्री साधु महाराज हैं । वह सैन्य जितना बलवान, मजबूत और विशाल होता है उतना ही जैनशासन-साम्राज्य बलवान, मजबूत और विशाल होता है। सेना-सैन्य की बलवत्ता और मजबूती का सारा अाधार उसको युद्ध-सामग्री पर निर्भर है । सैनिक के सभी शस्त्रास्त्र लोहे के बने हुए लोहमय होते हैं। जब सैनिक अपने शरीर पर लोहे का मजबूत कवच धारण कर शस्त्रधारी बन कर युद्ध के मैदान पर सन्मुख आता है, तब शत्रु को साक्षात् श्यामवर्ण वाला यमराज जैसा लगता है। साधुपद का श्याम-कृष्णवर्ण भी कर्मसाम्राज्य के सुभट राग-द्वेष मोहादि शत्रुओं के सामने यमराज के समान कवचधारी सुभट-योद्धा का भाव प्रदर्शित करता है। पंचम पदे रहे हए साधुओं में भी अपने अभ्यन्तर के राग-द्वेष-मोहादि शत्रुओं के प्रति पूर्ण विद्वेष वृत्ति जागृत रहती ही है। इस वृत्ति का पोषक वर्ण भी श्याम-कृष्ण है। इसी भाव को प्रदर्शित करने के लिये पंचम साधुपद का वर्ण श्याम-कृष्ण कहा है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२१