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भिक्षु आदि अनेक नामों से पहिचाना जाता है ।
साधुग्द का प्राराधन सत्ताईस प्रकार से क्यों ?
कारण यही है कि -- साधु २७ गुणों से समलंकृत है, इसलिये यह पंचम साधुपद सत्ताईस प्रकार से प्राराध्य है । शास्त्र में सत्ताईस प्रकार से २७ गुणों का प्रतिपादन किया गया है । उनमें से २७ गुणों का एक प्रकार निम्नलिखित है—
प्रारणातिपातविरमरणादि युक्त छह व्रत, पृथ्वीकायादि छह जीवकाय की रक्षा, पाँच इन्द्रियों का निग्रह, लोभ त्याग, क्षमा, भावविशुद्धि, प्रतिलेखनादिक करण विशुद्धि, संयमयोग का सेवन, मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति, क्षुधादि बाईस परीषहों की सहन तत्परता, तथा मरणान्त उपसर्गों की भी सहन - तत्परता अर्थात् मारणान्तिक पर्यन्त भी अडिगपना । ये सत्ताईस गुण साधु के कहे जाते हैं । इन सत्ताईस गुणों को प्राप्त करने के लिये सत्ताईस प्रकार से साधुपद का आराधन होता है ।
पञ्चपरमेष्ठी में साधुपद का स्थान
श्रीनमस्कार महामन्त्र के पञ्चपरमेष्ठियों में साधुपद
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - ११६