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[६] श्रीदर्शनपद
ॐ नमो दंसणस्स卐 'जिणुत्ततत्ते रुइलक्खरणस्स, _ नमो नमो निम्मलदंमरणस्स ।' [जिनेश्वर भगवान द्वारा कहे हुए तत्त्वों में रुचि रूप लक्षण वाले निर्मल दर्शन-सम्यक्त्व को वारंवार नमस्कार हो।] श्रद्धा लिङ्ग६ विनयाः१०शुद्धि ३ र्दोषाः५प्रभावना भरिणताः। भूषण५-लक्षण५-यतना६ आकारा६ भावना६ ध्येयाः ॥१॥ स्थाना६ न्येतै दै-रलङ्कृतं दर्शनमतिविशुद्धम् । ज्ञानक्रिययोर्मूलं, शिवसाधनमात्मसौल्यमिदम् ॥ २ ॥ जं दव्वछक्काइसु सद्दहारणं. तं दसरणं सव्वगुरणप्पहारणं । कुग्गाहवाही उवयंति जेणं, जहा विसुद्ध ण रसायणेणं ॥३॥
श्रीदर्शनपद का स्वरूप श्रीसिद्धचक्र के नवपद पैकी का यह 'श्री सम्यग् दर्शन पद' छठा है। प्रात्मा के समस्त गुणों में मुख्य गुण यही 'सम्यग् दर्शन' है । सम्यक्त्वहीन ज्ञान अज्ञान कहा जाता
श्री सिद्धानक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१४०