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इस तरह सामायिकादि पांचों चारित्रों का स्वरूप संक्षेप में कहा है।
प्रश्न-चौदह गुणस्थानकों की अपेक्षा कौनसा चारित्र कौनसे गुणस्थानक में समझना चाहिए ?
उत्तर-सम्यक्चारित्र के सामान्य से देशविरति और सर्वविरति ये दो भेद किये गये हैं। देशविरति चारित्र में एक सामायिक चारित्र का ही लाभ होता है। उसके भी तीन भेद हैं--(क) सम्यक्त्व सामायिक, (ख) श्रुतसामायिक और (ग) देशविरति सामायिक। उसमें सम्यक्त्व सामायिक और श्रु त सामायिक ये दोनों चौथे और पांचवें गुणस्थानक में होते हैं। देशविरति सामायिक तो मात्र एक पाँचवें गुणस्थान में होता है। इसलिये देशविरति सामायिकवन्त जीव ही देशचारित्रधर कहलाता है ।
स्थूल प्राणातिपात विरमणादि बारह व्रत या उनमें से एक, दो, तीन आदि व्रत उच्चरने वाला महानुभाव अवश्य सम्यक्त्वधारी हो तो ही उसको देशविरति चारित्र गुण प्रगट होता है। सर्वविरति चारित्र तो पाँच महाव्रतात्मक ही है । एक साथ ही पाँचों महाव्रत उच्चरने का है । देशविरति की भाँति एक, दो आदि नहीं उच्चर सकते हैं ।
आद्य और अन्तिम तीर्थंकर के शासन की एक साथ
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२३०