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प्राग
(६५) अनन्तदर्शनसंयुक्त चारित्र । (६६) अनन्तचारित्रसंयुक्त चारित्र । (६७) क्रोधनिग्रहकरण चारित्र । (६८) माननिग्रहकरण चारित्र । (६६) मायानिग्रहकरण चारित्र । (७०) लोभनिग्रहकरण चारित्र । इन सभी गुणों से समलंकृत चारित्र नमस्करणोय है ।
अष्टांग योगमय चारित्र जो आत्मा को मोक्ष के साथ जोड़ने का अर्थात् सम्बन्ध कराने का कार्य करता है, वही 'योग' कहा जाता है। उसके पाठ अंग हैं। इसलिये उसको प्रसिद्धि 'अष्टांग' तरीके है। इस अष्टांग योग को भी अपेक्षा से 'चारित्र' कहते हैं। योग के आठ अंग प्रात्मा को क्रमिक विकास साधनों के द्वारा मोक्षाभिमुख अर्थात् मोक्ष के सन्मुख बनाते हैं। उन आठों अंगों के नाम निम्नलिखित अनुसार हैं --- आठ अंगों के नाम और उनका स्वरूप (१) यम, (२) नियम, (३) करण, (४) प्रारणा
श्रीसिद्ध चक्र-नवपदस्वरूप दर्शन-२३६