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(३) सभी जीवों को अनाशक तथा हितकारिणी होने
से 'भूतहिता' है। (४) सत्य वस्तु को प्रगट करने वाली होने से 'भूतभावना
रूप' है। (५) कल्पवृक्ष और चिन्तामणि रत्न से भी अधिक फल
देने वाली होने से 'अमूल्य' है ।। (६) अपरिमित अर्थ को कहने वाली होने से 'अमिता' है। (७) अन्य प्रवचनों की आज्ञा द्वारा अजेय होने से
'अजिता' है। (८) महान् अर्थ वाली होने से 'महार्था' है । (६) महा सामर्थ्य सम्पन्न होने से 'महानुभावा' है । (१०) विश्व के समस्त द्रव्यादिक का प्रतिपादन करने वाली
होने से 'महाविषया' है।
श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्तों की इन्हीं दस आज्ञाओं को श्रुतकेवली व श्रीगणधर भगवन्तों ने श्रीद्वादशांगी में गूंथा है।
प्राचार की सुन्दर और श्रेष्ठ व्यवस्था की सुरक्षा करने वाले प्राचार्य महाराज हैं ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-८०