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पद के योग्य हैं अर्थात् प्राचार्य बनने लायक हैं। ऐसी योग्यता धारण करने वाले उपाध्यायजी महाराज श्रु तज्ञान को अविच्छिन्नप्रवाही बनाने के लिए, अपने गुरुदेव भावाचार्य भगवन्त की शुभ निश्रा में विचरते हुए, गच्छ-गण की चिन्ता में सावधान रह कर, योग्य शिष्य-समुदाय को श्रुतज्ञानरूप सिद्धान्त को वाचना कराने के लिए सर्वदा, सतत प्रयत्नशील, सज्ज रहते हैं।
उपाध्यायजी महाराज के सान्निध्य में शिष्य समुदाय संयम में स्थिर बन कर उद्विग्नता को तिलांजलि देते हैं।
___ सतत अध्ययन-अध्यापन में तत्पर अर्थात् स्वयं पढ़ने और दूसरों को पढ़ाने में मग्न, स्व-पर के हित की साधना में उद्युक्त, 'हाथी, अश्व, वृषभ, सिंह, वासुदेव-नरदेव, इन्द्र, सूर्य, चन्द्र, भण्डारी (कुबेर), जंबूवृक्ष, सीतानदी, मेरुपर्वत, स्वयंभूरमण समुद्र, सिन्धु, रत्न तथा भूप' इन सोलह उपमाओं से युक्त ऐसे उपाध्यायजी महाराज कल्याणकामी आत्माओं के लिए अहनिश आराध्य हैं।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१०२