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मोहरूपी विष से रहित होकर आत्मसजग बनता है। इसलिए अनुपम श्रुतज्ञान के दाता उपा
ध्यायजी महाराज को विषवैद्य गारुड़ी के समान कहा गया है।
(२) धन्वन्तरि वैद्य समान- श्री उपाध्यायजी महाराज
सच्चे धन्वन्तरि वैद्य के समान हैं क्योंकि वे अज्ञानरूप व्याधि से पीड़ित प्राणियों को श्रु तज्ञानरूपी रसायन-औषधि द्वारा सच्चा ज्ञानी बना कर वास्तविक आरोग्य का आस्वाद कराते हैं ।
(३) ज्ञान-अंकुश देने वाले- मनरूपी मदोन्मत्त हाथी
आत्मा के गुणरूपी वन को छिन्न-भिन्न कर देता है, उसे काबू-वश में रखने के लिए मात्र ज्ञानरूपी अंकुश ही समर्थ है । अमोघ शस्त्ररूप श्रु तज्ञान अंकुश का दान करने वाले और उसका प्रयोग करने की कला भी सिखाने वाले उपाध्यायजी महाराज हैं ।
मानरूपी महामद से मदोन्मत्त बने हुए प्राणियों को नम्र बनाने की कला में उपाध्यायजी महाराज अतिकुशल हैं । उनको विनयशीलता से ही शिष्य समुदाय बिना उपदेश ही विनयशील बन जाता है । उनके साहचर्य मात्र से मानरूपी हाथी पर आरूढ आत्मायें मानमुक्त हो जाती हैं तथा
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६८