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(३४) जिस स्थान में श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा विच
रते हैं वहाँ बसन्तादि छहों ऋतुओं के मनोहर पुष्प तथा फलादि का समूह उत्पन्न होता है अर्थात् सब ऋतुएँ भी अनुकूल हो जाती हैं ।
इस तरह देवताओं द्वारा किए गए उन्नीस अतिशय समझने चाहिये। ___ ये [४+११+१=३४] चौंतीस अतिशय श्रीअरिहन्ततीर्थंकर परमात्मा के होते हैं। श्री समवायांग सूत्र की पैंतीसवीं समवाय में भी इन चौंतीस अतिशयों का वर्णन आता है। श्री अरिहन्त-तीर्थंकर प्रभु की
चार महान् उपमाएँ लोकालोकप्रकाशक केवलज्ञान की प्राप्ति के साथ ही सर्वज्ञ श्री अरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा को अपनी भावनाओं को सम्पूर्णता से आविर्भाव करने के लिये जितने साधन चाहिये वे सभी आकर उनको मिल जाते हैं। उन साधनों द्वारा एक अन्तर्मुहूर्त में ही मात्र ‘उवन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा' रूप त्रिपदी के अनुपम दान से सम्पूर्ण द्वादशांगी को ही अरिहन्त परमात्मा सर्जन करवा कर और चतुर्विध संघ की स्थापना करके अपने शासन को दिगन्तव्यापी बना सकते हैं।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४१