Book Title: Shubhshil shatak
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 11
________________ कथाक्रम कथा-नाम पृष्ठांक २४ 38 ९ ४२ ४५ ३७. ४६ २४. कामचोर का सब जगह अनादर होता है. २५. नागार्जुनः आकाशगामीनी विद्या और रससिद्धि. २६. खल भक्षण की इच्छाः धन नाश का संकेत. २७. हीन कुलोत्पन्न विद्वान श्रेष्ठ कलीन बन जाता है. धन ही भय का कारण है. २९. धर्मशालादि निष्पादन पुण्य कार्य है. ३०. सन्तान के बिना भी स्वर्गगमन होता है. ३१. शनैश्चर देव सब देवों में बड़ा है. ३२. मृग-मरीचिका में माता-पिता का त्याग. ३३. विचारानुसार ही फल की प्राप्ति होती है. ३४. व्यापार ही जाति-बोधक होता है. ३५. अच्छे-बुरे का सूचक. ३६. हाथ का दिया हुआ ही काम आता है. माता द्वारा धर्म-मार्ग दिखलाना. राम नाम से पत्थर तैरते है. समयोचित्त बुद्धि चातुर्य. आँखें मूंद जाने के बाद? आयु प्रति क्षण घटती जाती है. वस्तु तोलने में छल-कपट. ४३. विपदा में समय-यापन ही श्रेष्ठ है. ४४. विद्याभिमानी श्रीधराचार्य. ४५. कूट प्रश्नों द्वारा गर्व-हरण. अतिथि सत्कार. ४७. बुद्धि का चातुर्य. ४८. उत्कृष्ट सुख-दुःख कहाँ है? ४९. नारी के वशीभूत प्रभाचन्द्र. ५०. व्यंग का प्रभाव. ५१. बिना विचारे कार्य करना. ३८. ४७ ३९. ४७ ४०. ४८ ४१. आयुमा ४६. २ ६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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