Book Title: Shubhshil shatak Author(s): Vinaysagar Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 9
________________ हैं। जिनप्रभसूरि के चमत्कारों की घटनाओं का उल्लेख सोमधर्मगणि (शुभशील के समकालीन) रचित उपदेश-तरंगिणी में भी प्राप्त हैं। कुछ कथाएँ नीति सम्बन्धित हैं, कुछ गणिकाओं की बुद्धिचातुर्य को प्रकट करती हैं, कुछ लोक-कथाएँ जाति व्यवस्था पर भी चोट करने वाली हैं और कुछ कथाएँ 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' के विरोध में भी हैं। यह कहा जा सकता है कि इन लघु-कथाओं के माध्यम से मानव का हृदय सद् धर्म के प्रति आकृष्ट होकर शुभाचरण की ओर अग्रसर हो, शुभ पुण्य कार्यों का संचय कर क्रमशः आत्मशुद्धि स्व-स्वरूप को प्राप्त करे, यही कृतिकार की अन्तरङ्ग शुभ कामना है। यह ठीक है कि प्रायः इन कथाओं का अन्त जैन धर्म के उपदेशों से आवृत है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि शुभशीलगणि स्वयं जैन मुनि थे। प्रस्तुत शुभशीलशतक में १०० कथाएँ प्रकाशित की जा रही हैं। इसके लेखन और प्रकाशन का श्रेय श्री डी.आर. मेहता, संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर को ही है, जिनके अनुरोध पर मैंने अपनी भाषा और शैली में इसका लेखन किया है। - म. विनयसागर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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