Book Title: Shubhshil shatak Author(s): Vinaysagar Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 8
________________ उदाहरण के तौर पर कुछ शब्द प्रस्तुत है :- अङ्गीष्टक - अङ्गीठी, अडागर पत्र - नागरवेल का पान, अन्धल - अन्धा, अपवरक - कमरा/ओरडी, कूटमाल - झूठा आरोप, उद्वस - उजाड़, कच्च - कच्चा, रंधनी - भोजनालय आदि। रचना शैली सामान्य पाठकों के लिए भी पठनीय है। सर्वग्राही भाषा का प्रयोग किया गया है। इस प्रबन्ध में शुभशीलगणि ने छोटे-छोटे दृष्टान्तों के रूप में ६२४ लघु-कथानक लिखे हैं जो कि सर्वजनग्राह्य उपयोगी और पठनीय हैं। इस ग्रन्थ की १०० लघु कथाओं का आधार लेकर मैंने अपनी भाषा में यह शुभशीलशतक का सङ्कलन किया है। प्रस्तुत कृति इस ग्रन्थ का न तो शब्दानुवाद है और न भावानुवाद है, आधार इसका अवश्य है किन्तु स्वतन्त्र है। यही कारण है कि कथाओं के शीर्षक भी वे ही न रखकर परिवर्तित कर दिये है और आज के युगानुकूल ही इस पुस्तक का नाम शुभशीलशतक रखा है। इन लघु कथानकों में जैनाचार्यों, सम्राटों, जैन मन्त्रियों, जैन सेठों के द्वारा मन्दिर निर्माण, धार्मिक कृत्य, उदारता आदि के हैं। चालुक्यवंशीय महाराजा सिद्धराज जयसिंह, परमार्फत् कुमारपाल के मान्य मन्त्रीगण-शान्तु मेहता, उदयन, सज्जन, अम्बड़ और आभड के कथानक भी इसमें प्राप्त है। इसके अतिरिक्त कुछ लोक कथानक भी हैं जो कि १६वीं शताब्दी में प्रचलित थे, उनका भी सङ्कलन इसमें किया गया है। जैसे - जोशी टीडा की कथा। यह कथा राजस्थान में अत्यधिक प्रसिद्ध है और इसकी लोक कथा को आधार मानकर श्री विजयदान देथा ने " भगवान् की मौत'' शीर्षक से विस्तार से कहानी लिखी है जो नया ज्ञानोदय, अंक १८ अगस्त २००४ में प्रकाशित हुई है। "मन की आँखें मींच" कहानी भी कुछ परिवर्तन के बाद स्वामी विवेकानन्द और खेतड़ी नरेश अजितसिंह के दरबाद में घटित हुई थी। कुछ कहानियाँ लोक-प्रसिद्ध हितोपदेश, पञ्चतन्त्र के आधार पर भी हैं। जैनाचार्यों की कथाओं में प्रारम्भ के २ से १७ कथानक तो खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभसूरि और मोहम्मद तुगलक से सम्बन्ध रखते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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