Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० सितम्बर - २०१३ चरणकमलआरंभ, जिस्यां हुइ केलिना थंभ। धुरि लगइ सहजि सुशील, करइ नितु यवनवी लील ||२४|| ।। राग - सोधडउ ।। पंच वरीसउ जव हुउ हो, कुंअर दुर्लभराज। सज्जन सहूको हरखीउं हो, नेसालइ वरराज किं ||२५।। विद्या अभ्यसइ रे, बोलइ सुललित वाणि कि । सुरजन मोहइ रे, रूपि मयणअवतार कि दूलओ सोहइ रे, रंजवइ बालगोपाल कि (आंकणी) लखण छंद प्रमाण भणी हो, लाधउ विद्यापार | उच्छवि नीय घरि आविउ हो, विद्यातणुं भंडार कि ।।२६।। विद्या अब्यसइ रे.... तात मात चिंतावीआ हो, जोइ सुकुली(लि)णी बाल । चंपक साह ऊमाहलउ हो, परिणावी नीय बाल कि ।।२७।। विद्या अभ्यसइ रे... सुगुरु तणी सेवा करइ हो, दूलउ अति सुकुमाल। जिनवर पूजइ मनि रूली हो, लहूउ लीलविलास कि ||२९ 11 विद्या अभ्यसइ रे... आगमआगर अतिहिं भला हो, सिरिउदयनंदिसूरिराय सेवा करतां उपनउ हो, लेवा संयमभाव कि ३०!! विद्या अभ्यसइ रे... । ढाल - धउलनउ ।। बे कर जोडी वीनवइ, संभलउ तातनइ माता संयमलच्छी आदरूं, मझ मति एहीय वात ।।३१।। ए संसार असारडइ, सार छइ संयमरयण । जिणि करी शिवपुरि जाईइ, साचुं करउ मझ वयण ।।३२।। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84