Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि जिन विवाहलो गई! ||श्री गुरुभ्यो नमः।। ||ढाल-वीवाहलु।। शासनदेवीअ पाय पणमेवीय, मुझ मनि एह ऊमाहलो' ए। मात सरसति तणइ सहीय', सुपसाउलइ गाइसिउं रिषभ वीवाहलु ए ।। तेर भवंतर मूल चरित्रवर, भाविइं भवियण सांभलु ए। धण-कण-कंचण राज-राणिमसिउंअ, परभवि-इहभवि जिम मिलु ए ।।१।। || Jटक || मेलीउ सारथ सकल लेई, जाम वाटिइं चालीओ। धनसार सारथपति सुगुरुसिउं, ताम वरिषा आवीउ ।। चुमासि लागी हरिय जागी', चालवा कोइ नवि लहइ। कंदमूल आहार करतां, लोक सहू तिहां कणि रहइ ।।२।। श्रीधर्मघोषमुनि बहू परिवारसिउं, तप उपवास घणा करइ ए । मास चिहुं तणइ अति धन मनमांहि, साधु निग्रंथ चिंतन धरइ ए ।। पूज्य अणगार ए न लिइ असूझतूं, मइ पुण न करीअ किं पि सार] हिवइ प्रभातिइं जई दान फासूअ*, देई खामसिउं अपराध वार-वार !३!] || Jटक ।। इम वार-वार विमासता', तव सहस्रकिरण परगट थया । सुगुरुनइ आमंत्रवानइ, धनसार सारथपति गया ।। अतिभाव भावी, घृत विहिरावी, सार सम्य(म)कित्त पामिओ। बीजइ ए, भवि उत्तरकुरमाहि, युगलधर्मिइ आवीओ ||४|| || ढाल-जलही(हि)नी ।। त्रिहि पल्योपम भोगवी, युगल तणा वर भोग। त्रीजइ भवि अवतरीआ, सुर सौधर्म संयोग 11१|| For Private and Personal Use Only

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