Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
२६
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सितम्बर २०१३
ते मित्र च्यारइ वैदनइँ कहई, लोक बहु धन खाधउ । पुण मुनि-यती (ति) नी सार कीजइ, एह माग न लाधउ ||२||
वैद कहई तो सांभलु ए, माहरइ ए नथी उसड" दोइ । रतनकंबल बावनचंदनूं ए. कोतीआएवणि” हाटि ते होइ तु ।। तेह च्यारि लेवा गया ए पूछइ ए.
तस सेठि विचार ते कहइ साधु पडीगसिउं ए ।
करिसिउं ए सखी जनमपवित्त, आपणउं इम तारसिउं ए ||३||
// त्रुटक //
तारसिउं एहवां वचन निसुणी, सेठि मनि आणंदिउ । ते मूलपाखइ" उसड देई, भाव भाविइं भावीउ ।। ते कुमरना बहुभाव देखी, वइरागिइं चारित्त लीउं 1 केवल पामी मुगति पहुता, सेठि भवसफलउ कीउ ||४||
// ढाल वडउ नेसालाउ ए ||
For Private and Personal Use Only
-
रिषिनुं...
तु तेह पांचइ ए आवीआ ए वनमाहि साधुनइ पासि ||१|| त्रोड ए कर्मनी कोडि तु, पुण्यपोतइ भरइ ए ||२|| || द्रूपद ||
मर्दना दईअ तेलसिउं ए. काढीआ कोढना जीव || ३ ||
रतनकंबल सिर वींटीउ ए चंदन लगाडीउं अंगि ||४|| जीव अने ते परिठव्या ए, इम करिआ साधु नीरोग ||५|| साधुनु , धर्म पांचइ करी ए, छठउ श्रेयांसनु जीव ॥ ६॥ बारमइ कलपि ते सुर हउआ ए, दसमइ भवि जिणराय ए ।।७।।
रिषिनुं...
रिषिनुं...
रिषिनुं ...
रिषिनुं...
// ढाल - आदनराय पहुतला जाम || इग्यारमइ भवि महाविदेहमांहि, पुंडरीकिणी नयरी तिहां ठाहि । वइरसेन नरवर राज करंति, जिनजीव वज्रनाभकुमर हवंति ||१|| बाहू सुबाहु पीढ महापीढ च्यारि, पूरव मित्र तसु बंधव च्यारि । वइरसेनराय ते अछइ जिणंद, चारित्र लि (ली) इ करी कुमरनरिंद ||२||

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84