Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - ३२
जगत्तमंडण जिन विहरता ए, आव्या पुरिमताल । नयरि अयोध्या पासइ जिहां ए, शकटमुखइ उद्यानि ।। निग्रोधवृक्ष तलइ ए, ऊगतइ सूरि निरमलु केवल पामीउं ए। आवी सुरवर कोडि तिहां करइ महोछवू ए || ३ ||
महोच्छवनी कोडि करतां समोसरण रचावइ ए ।
+
हवइ सांभलु मरुदेवि माता, वांदिवा जिम आवइ ए ||४||
|| ढाल करवा रावणनानी // // राग सामेरी ||
रिषभ दीक्षा लीइ जव लगइ मातामरुदेवी दुख करइ तव लगइ | झूरइ ए, आणी मनि अंदोहड " ए, भरथनइ दीइ उलंभडा । तुज धिगहउ राज वालूअडा, रूडा रे रिषभ केरी शुद्धि नही ए ||१||
// त्रूटक //
शुद्धि नही माहरा रिषभ केरी, न जाणउं किहां कणिअच्छइ । एह दुख थकी मुज मरण आवइ, करिसि पछि (छ) तावु ए छइ ||
जेहनुं दर्शन देवदुर्लभ पामता मझ घर छतां ते रुषभ माहरु किम करइ छइ । न जाणउं वनि हीडतां, तुं देवनइ कीधे अवासे सूइ सुखनिद्रा करी |
रुषभ सूनेदेउले समशानि सूइ संथरी, तूं देव ने (नी) मी (मि) आहारलिइ । नितु पुत्र भिक्षा हींड ए हिवइ दीजीइ केहनइं, दूषण कर्म जिहां जिहांइं पडिहिडइ ||
रिषभनइ घरि तुज्झ समु सुत, इसिउ अविनयमंदिरू । रिषभनी तूं सि(शु) द्धि न करइ, सांभलि रे भरथेसरू ||२||
भरथ भगइ सुणि मात ए, करजोडी जेह कहुं बात ए । तात अमारु त्रिभुवन जाणीइ ए. सुरनर सेवक तस सहू ।।
तेहनी लीलाछइ अतिबहू, लहू (हु) अडउ त्रिभुवनमाहि वखाणीइ ए || ३ |
४१
वक्खाणीइ जस नाम लीधइ, पाप जाई भवतणां ।
दर्शनि दुर्गति थकी छूटइ, कर्म त्रूटडइ भवतणां || दिन थोडिलामांहि हूं दिखाडिस, रिद्धि ताहरा पुत्रनी । इम वरस सहस गया जि (जी) वारइं, आवी ताम वधामणी ||४||
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84