Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 78
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ सितम्बर - २०१३ (१) मूढ़ अवस्था - यह तमोगुण प्रधान अवस्था है जहाँ अज्ञान और आलस्य का साम्राज्य होता है। ऐसा जीव अधर्म व अवैराग्यादि विषयों में प्रवृत्त होता है। जैन दर्शन इसे मिथ्यात्व के रूप में वर्णित करता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) क्षिप्त अवस्था यह रजोगुण प्रधान अवस्था है जिसमें भौतिकता के प्रति अनुराग, आसक्ति या मूर्छा होती है, विषय-वासना युक्त चंचलता होती है तथा जीव वासनाओं का दास होने से दुःखी रहता है। यह मिश्र गुणस्थान से तुलनीय है। (३) विक्षिप्त अवस्था - चित्त की थोड़ी कम चंचलता ही विक्षिप्त चित्तमय है । इसका आशय भोगों से विरति या निष्क्रियता अथवा प्रयास पूर्ण अल्पता की आरम्भिक स्थिति से लिया जा सकता है जहाँ तमो और रजोगुण का सत्वगुण संघर्ष आरम्भ होता है। साधक तमो-रजो प्रवृत्तिपरक भावों को दबाने का प्रयास करता है जबकि ये शुभाशुभ कर्म उसे विक्षोभित करते हैं। इसकी आरम्भिक दशा की तुलना सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से तथा उत्तरार्ध को पाँचवें और छठवें गुणस्थान के समीप माना जा सकता है। बौद्ध परम्परा में यह स्त्रोतापन्न भूमि के निकट प्रतीत होती है। (४) एकाग्र अवस्था - रजो तमो वृत्तियाँ का निरोध करके सात्विक वृत्तियों की प्रधानता से सदैव एक ही विषय का ध्यान एकाग्र चित्त कहलाता है इससे रजो तथा तमो वृत्ति का निरोध होता है लेकिन सात्विक वृत्ति शेष रहती है। इसी में संप्रज्ञात योग होता है। यह चेतना की पूर्ण जाग्रत अवस्था है जहाँ वासनाओं को क्षीण (जीर्ण-शीर्ण) कर साधक सातवें से १२वें गुणस्थान समकक्ष तक की विकास यात्रा तय करता है। (५) निरुद्ध अवस्था - इस भूमि में साधक चेतन स्व-स्वरूप में स्थिर होकर हर तरह के परिणामों का पूर्ण निरोध करता है । त्रिविध वृत्तियों का निरोध करने पर जब चित्त संस्कार मात्र अवशिष्ट रहता है तब निरुद्ध कहा जाता है । १३वें और १४वे गुणस्थान की विशिष्टताओं के समकक्ष इसे रखा जा सकता है। उपसंहार अंत में यह कहा जा सकता है कि योग दर्शन विश्व और भारत के प्राचीन दर्शनों में से एक है। सैद्धान्तिक तौर पर इसमें भी आध्यात्मिक विकास की क्रमबद्ध व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है जैसा कि जैन दर्शन में वर्णित गुणस्थान अभिगम में प्रवधान हैं । यद्यपि गुणस्थान श्रेणियाँ योग दर्शन में ज्यों की त्यों नहीं For Private and Personal Use Only

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