Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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जाई जुई चंपक तणी, सार माला रची ए । पूजइ ए परमआनंद तु, मनवचनिइं सु(शु)ची ए ||३||
जिणवर विहरता जाइ तु, तक्षश (शि) लापुरी ए । सांझ (ज) समइ वनपालि तु दीधी वधामणी ए || ४ ||
बलवंत बाहुबलि रायनइ, जईअ वद्धावीआ ए । स्वामी रुषभ जिणेसरो, वनमाहि आवीया ए ||५||
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|| ढाल सांजीनु //
माहरु तातपन (ण) उ तु ए, पुण्यइ आगलु” ए । छांडीय घरनी रे लक्षमी, संजमसिरीवरिउ ए ।।१।।
लेई सुभटनी रिद्धि, प्रभातिइ वांदिवु ए । चालीउ ऊगतइ सूरि, मोटइ भंडाणसुं ए | २|
प्रभाति प्रभु ग्या अनेथि तु, पुण्य विण किहां मिलइ ए । राय न देख तात ए, वियोगिइं दुख धरइ ए ||३||
पूछइ ए पंथीय वात, तात दीठा किहां ए । रांक तइ करि रतन, कहु किहांथी रहइ ए || ४ ||
ताति दूहवण आणी, वीआलि" न वांदीआ ए । इम विलंवंता ए अतिघणुं, प्रधानिइं वारीया ए || ५ ||
धर्मवरचक्र करुं ताम तु, तातनी भगतिस्युं ए । घर गया भोगवइ राज तु, बहुलीय देस तु ए ||६|| || ढाल-कली ॥
वरस सहस इम विहरीया ए, स्वामीअ देस - विदेसि । नयरि पुरि रूअडइ ए, जंगम तीरथसार जगत्रनई वालहु ए ।। धन-धन ते नरनारि, विहरतु जेणइ देखीउ ए । भूमिका तेहजि धन्य जिहा, पग तणी रज पडी ए ।।१।।
पडी पाए जेणई वांद्या, तेह सुरवर धन्नू ए । श्रीनाभिनंदन दुरितखंडण, जगत्तमंडण जिन्नू ए ||२||
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सितम्बर २०१३

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