Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org लेई सोवनकोडि श्रीजिनमंदिरि मुंकु, वेगि उतावला ए । तेह सुणी आनंदि रोमांचइ घणुं, भंडारी वाधइ कला ए ||२|| त्रिणिसइकोडि सुवर्णकोडि अठ्यासीय, लाख असी संख्या सुणीय । जिन घरि मुंकइ तेह पाए लागीय, जाइ देवलोक भणीअ ||३|| जिनवर दिइ नितु दान मानवनइ, वर वर वरज्यो जे जोईइ ए । करण कीधा लोक सहू सुखी थयुं, दुख-दारिद्र दूरिइ गया ए ||४|| तु लोकांतिकदेव आवई तिहां कणि, जिन पाए लागी इम कहइ ए । त्रिभुवन केरा नाथ धर्म प्रवर्त्तावउ, लोक सहूनइ तारिवा ए ||५|| एह अयोध्यानुं राज, भरहेसर तुम्हे करु ए । बहुलीअ मंडलदेसनुं, बाहुबलि तुम्हे धरु ए पुत्र अट्टाणुंनइ दीधा तु, देस ते झूझूआ " ए ।। करयो राजनो सार तु, तुम्हे हिवि मूंगया ए ||१|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बूझि - बूझि भगवंत छांडि, विषमभोग ए संसारवधारणा ए ! इम कही गया निजठामि तु ते, जिनवर निजसुतनइ सिष्यादीइ ए ||६| || ढाल -मउडनी ।। न्याइ पालयो राज तु. कुल अजूआलज्यो ए । करयो देसनी रक्षा तु, लोकनइं पालयो ए ||२| इम देई सीख ते सार तु, जगहितकारणी ए। दीक्षा मन आणेइ तु भवजलतारणी ए 11३ ॥ ॥ सुरवर - किंनर कोडि तु ततक्षणि तिहां मिली ए करइ चारित्र उच्छव तु, पूरइ मनरली ए ।।४।। श (शि) बिका ऊपाडइ इंद्र तु, भगतइ उहलसी ए । सिद्धारथवनमाहि तु, आवइ अतिहसी ए ||५|| सितम्बर २०१३ दोइ करी उपवास तु, चारित्र ऊचरइ ए । च्यारिसहस मुनि साथि तु, संयमसिरी वरइ ए ||६|| विहरइ घर पुरि गामि तु, चालतु सुरतरू ए ! जेणइ दीठा नाह तु, धन ते नारी-नरु ए ||७|| For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84