Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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लेई सोवनकोडि श्रीजिनमंदिरि मुंकु, वेगि उतावला ए । तेह सुणी आनंदि रोमांचइ घणुं, भंडारी वाधइ कला ए ||२|| त्रिणिसइकोडि सुवर्णकोडि अठ्यासीय, लाख असी संख्या सुणीय । जिन घरि मुंकइ तेह पाए लागीय, जाइ देवलोक भणीअ ||३||
जिनवर दिइ नितु दान मानवनइ, वर वर वरज्यो जे जोईइ ए । करण कीधा लोक सहू सुखी थयुं, दुख-दारिद्र दूरिइ गया ए ||४||
तु लोकांतिकदेव आवई तिहां कणि, जिन पाए लागी इम कहइ ए । त्रिभुवन केरा नाथ धर्म प्रवर्त्तावउ, लोक सहूनइ तारिवा ए ||५||
एह अयोध्यानुं राज, भरहेसर तुम्हे करु ए । बहुलीअ मंडलदेसनुं, बाहुबलि तुम्हे धरु ए पुत्र अट्टाणुंनइ दीधा तु, देस ते झूझूआ " ए ।। करयो राजनो सार तु, तुम्हे हिवि मूंगया ए ||१||
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बूझि - बूझि भगवंत छांडि, विषमभोग ए संसारवधारणा ए ! इम कही गया निजठामि तु ते, जिनवर निजसुतनइ सिष्यादीइ ए ||६|
|| ढाल -मउडनी ।।
न्याइ पालयो राज तु. कुल अजूआलज्यो ए । करयो देसनी रक्षा तु, लोकनइं पालयो ए ||२|
इम देई सीख ते सार तु, जगहितकारणी ए। दीक्षा मन आणेइ तु भवजलतारणी ए 11३ ॥ ॥ सुरवर - किंनर कोडि तु ततक्षणि तिहां मिली ए करइ चारित्र उच्छव तु, पूरइ मनरली ए ।।४।। श (शि) बिका ऊपाडइ इंद्र तु, भगतइ उहलसी ए । सिद्धारथवनमाहि तु, आवइ अतिहसी ए ||५||
सितम्बर २०१३
दोइ करी उपवास तु, चारित्र ऊचरइ ए । च्यारिसहस मुनि साथि तु, संयमसिरी वरइ ए ||६||
विहरइ घर पुरि गामि तु, चालतु सुरतरू ए ! जेणइ दीठा नाह तु, धन ते नारी-नरु ए ||७||
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