Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर - ३२ www.kobatirth.org इसिउं शास्वत पद पावइ, गिरिवरशृंगअ द्वावइ । सुरवर मिलीअ महोत्सव, करइ कल्याणिक उत्सव ||९|| जाइ निज निज ठामि लिइ नितु ताहरूंअ नाम | नामिदं पातक जाई, पुण्यपवित्त नित थाइ ||१०|| || ढाल घोडीनु // " इम श्री रिसहेसर, गायु पुण्यपवित्त । एह तेर भवंतर, केरुं मूल चरित || हिव दोइ करजोडी, करूं वीनती आज । तू निसुणि कृपापर, स्वामी श्रीजिनराज ।। तुज स्तवन करीनइ, नवि मागुं राज - रिद्ध । नवि मागुं सुरसुख, वली न मागुं सिद्धि ।। हुं एतलुं मागं कृपा करी दिउ मज्झ । भवि-भवि वली गाऊं, गुणि गरूआ हुं तुज्झ ||१|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एह धवल करता, आण विराधी जेह | मझ मिच्छादुक्कड, तिहां कण नही संदेह || भलई नरभव लाधु, भलई लाधु जिनधर्म । तुज पाइ सेवतां, त्रूटइ सघला कर्म ||२| || काव्य || इम नाभिनंदन, दुरितखंडण, जगत्तमंडण जिनवरो । मइ गुरुतणउ, सुपसाउ पामी, गाइआ जगहितकरो || एह धवल गाई, जिन आराहइ, जेह नर-नारी सदा । ते मुगति जाइ, सुखी थाइ, बोलइ सेवक इम मुदा ॥ For Private and Personal Use Only ४५ ।। इति श्रीरुषभ वीवाहलु समाप्तमिति || ।। लिखितं च श्री लाभपुरपुरे सं. शशिकलाकलितविदयद्धेविदिता पौष मास शुक्ल प्रतिपदि गुरुवारे श्रा० लाडां पठन कृते स्वपुण्यपुण्यार्थम् || शुभं भवतु श्रीमद्देवगुरुप्रसत्ते श्री कल्याणस्तु श्रीः श्रीः श्रीः ।।

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