Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगपरम्परा में वर्णित आध्यात्मिक विकास एवं गुणस्थान डॉ. दीपा जैन (गतांक से आगे) योग वशिष्ठ में वर्णित चौदह गुण श्रेणियाँ - योग वशिष्ठ में वर्णित चौदह गुण श्रेणियों को दो प्रमुख उप-विभागों में रखा गया है। प्रथम विभाग में इन सात भूमियों का समावेश किया गया है जिनका सम्बन्ध अज्ञान से है तथा अंतिम सात भूमियों का समावेश किया गया है जिनका सम्बन्ध अज्ञान से है तथा अंतिम सात भूमियों में उन अवस्थाओं को सम्मिलित किया गया है जिनका सम्बन्ध ज्ञान या जाग्रत स्थिति से है। (अ) अज्ञान की सात अवस्थाऐं - अज्ञान की ये सात अवस्थाएं ज्ञानसार में निम्नवत् रुप में वर्णित की गई हैं - तत्रारिपिततमज्ञान तस्य भूमिरिमः श्रृणु । बीजजागृत्तथा-जागृतृमहाजागृत-सुशुप्तकम ।। जागृतस्वप्नस्तथा-स्वप्नःस्वप्नजागृत-सुशुप्तकम। इति सप्तविधी मोहः पुनरेव परस्परम् ।। (ज्ञानसार पूर्णताष्टक) (१) बीजजाग्रत अवस्था - भविष्यच्चित-दिनामशब्दार्थभाजनम् । वीजरूपं स्थितं जागृत बीज जागृतमुच्यते ।। यह चेतना की प्रसुप्त अवस्था है जो वनस्पति जगत की स्थिति के समकक्ष है। यहाँ अहम् भाव की अनुभूति जागृत नहीं होती ! जैन सिद्धान्त के अनुसार ऐसे वनस्पतिकाय जीवों में चेतना के और अधिक विकास की क्षमता होते हुए भी व्यक्त नहीं हो पाती मात्र बीजरुप में ही इसका अस्तित्व रहता है इसीलिए इसे बीजजागृत अवस्था कहा जाता है। (२) जाग्रत अवस्था - एषा ज्ञप्तेर्नवावस्था त्वं जागृत्संसृति श्रृणु। नवप्रसूतास्य परादयं चाहमिदमिदं च मम ।। For Private and Personal Use Only

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