Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - ३२
४३
ढाल-४०11
चक्र उपअ षटखंड साधी, राजनी लीला भरथइ लाधी 11१।। भाइ अट्ठाणुं आण मंगावइ, ते ते वलतुं कहण कहावइ २!! तातिइं दीधउं अम्हनई राज, अम्हे नही करूं तुम्हारं काज ।।३।। वली अम्हे पूछिसि तात सुजाण, ज्यु कहस्यइ तु मानसिउं आण 11४11 नही तु अम्हे झूझ करेसिउं, ताहरु राज अम्हे लेसिउं ||५|| अम्हे-तम्हे एक ज तातना पूत्र, अम्ह-तम्ह सरिखुंअछइ घरसूत्र 11६ || अवसरि रिषभ अष्टापदि आवइ, पुत्र अट्ठाणूं ते वांदिवा जावइ । ७ !! वांदी पूछइ भरथनी वात तु, वलतुं कहइ रिषभजी तात ||८|]
ढाल-४१॥ एह भवि भमतां बहु परि, लाधा छइ भोग | बहु परिनइ लाधा ए, सुख अतिघणां ।। तुहि पुणि तृपता तेणइ, सुखि न थया जो आजस्यउ । इण सुखि किम होसिउ, ए(इ)णइं भवि किम सुखी ए ||१|| किम सुखी होसिउ विषयसुखथी, तृपति नहीय निरंतरू] अंगार दाहकतणउ उपनय, दाखवइ श्री जिनवरू 11 ते सयल सुत प्रतिबोध पाम्या, लीइ चारित्र मनोहरू। बहु तप तपतां कर्म खपतां, हऊआ केवलश्रीवरू ।।२।। एक दिनि बाहूबलि, रायनइ मनावइ तु। आण वलतुं कहावइ सपराणो, अम्हे सुत रिष[भ]ना ए ।। आगइ तुम्हे बांधव राज, छंडाव्या पछइ निज काज] तेह दुख मझनई अछइ, आजमनमाहि अतिघणुं ए ।।३।। अतिघणु कटक तु मेली, आवइ भरथ तक्षशलापुरी। तिहां भरथ भागु जयपताका, बाहूबलि लाभइ खरी ।।
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84