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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४० www.kobatirth.org जाई जुई चंपक तणी, सार माला रची ए । पूजइ ए परमआनंद तु, मनवचनिइं सु(शु)ची ए ||३|| जिणवर विहरता जाइ तु, तक्षश (शि) लापुरी ए । सांझ (ज) समइ वनपालि तु दीधी वधामणी ए || ४ || बलवंत बाहुबलि रायनइ, जईअ वद्धावीआ ए । स्वामी रुषभ जिणेसरो, वनमाहि आवीया ए ||५|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ढाल सांजीनु // माहरु तातपन (ण) उ तु ए, पुण्यइ आगलु” ए । छांडीय घरनी रे लक्षमी, संजमसिरीवरिउ ए ।।१।। लेई सुभटनी रिद्धि, प्रभातिइ वांदिवु ए । चालीउ ऊगतइ सूरि, मोटइ भंडाणसुं ए | २| प्रभाति प्रभु ग्या अनेथि तु, पुण्य विण किहां मिलइ ए । राय न देख तात ए, वियोगिइं दुख धरइ ए ||३|| पूछइ ए पंथीय वात, तात दीठा किहां ए । रांक तइ करि रतन, कहु किहांथी रहइ ए || ४ || ताति दूहवण आणी, वीआलि" न वांदीआ ए । इम विलंवंता ए अतिघणुं, प्रधानिइं वारीया ए || ५ || धर्मवरचक्र करुं ताम तु, तातनी भगतिस्युं ए । घर गया भोगवइ राज तु, बहुलीय देस तु ए ||६|| || ढाल-कली ॥ वरस सहस इम विहरीया ए, स्वामीअ देस - विदेसि । नयरि पुरि रूअडइ ए, जंगम तीरथसार जगत्रनई वालहु ए ।। धन-धन ते नरनारि, विहरतु जेणइ देखीउ ए । भूमिका तेहजि धन्य जिहा, पग तणी रज पडी ए ।।१।। पडी पाए जेणई वांद्या, तेह सुरवर धन्नू ए । श्रीनाभिनंदन दुरितखंडण, जगत्तमंडण जिन्नू ए ||२|| For Private and Personal Use Only सितम्बर २०१३
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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