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श्रुतसागर - ३२
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|| ढाल घोडीनी ।।
जस घरि जाइ विहरता, सोइ आणइ हरख अपार ||१||
रिषभ घरि आवइ छइ ए तु नाभिनरिंदकुलमंडणु । माता मरुदेवी उरि धरी आइ ||२||
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कोइ घोडा कोइ पालकी (ख), भेट करइ आनंदि । मणि - माणिक मोती तणा, कोइ रतने भरीया थाल ||३|| भद्रजाति कहाथी लेई, कोई राजा ढोइ रंगि ||४|| कोइ निजपुत्री वल्लही" दिइ कन्यानूं (नु) दान रे !|५|| पुण नवि कोई दिइ सूजता, फासू अन्ननइ-पान || ६ || पुहता गजपुरि विहरता, तिहां देखइ श्रेयांसकुमार ||७|| त्रिहु जणे सुपना देखीया, तेणइ कीधा सुपनविचार रे ||८||
जाती (ति) समरण सांभरइ तिहां, दसभवतणउ सनेह | १९ ।। फासूअरस विहरावीआ, इम वरसिहं पाम्युं आहार ||१०|| पांचदिव्य तिहां कणि ह ( हु )वां, सुर जय-जय सबद जपंति
|| ढाल -कुंकुछडानी //
चंदनि छडउ" देवारइ" ए, भुइ" सूधी" करइ ए । रतनमइ पीठ बंधावर तु, सोवनमणिधरी ए ||१||
दिन प्रति पूजइ पीठ तु, भोजन तु करइ ए । मोतीचउक पूरावइ ए, ऊगटि छांटना ए ॥२॥
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रिषभ घरि ...
जिहां ऊभा करिउं पारणउं, तिहां कुमरनइ ऊपनी भगति ||१२||
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रिषभ घरि ...
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