Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर - ३२
२७ वज्रनाभराजा राज्य करंता, चक्र ऊपन्नुअ षटखंड जीता। साधु वेयावच्चतणुं एह पुण्य, पांचइ बांधव ते विलसइ धन्य ||३|| सत्तरिलाख पूरव घरवासि, पछइ पिता तीर्थंकर पासि । पांचइ बांधव लीइ ए चारित्र, द्वादशांगी भणइ पहिलउ पुत्र ||४|! ४३
|| ढाल-ऊलालु ।। वीसथानकवर सेवी, तप-जप बहुत करेवी! तीर्थकरपद बांधइ, इम ते आतम साधइ ||१|| बाहु वेयावच्च नित करइ, चक्रवर्ति पदवी ते धरइ । कितिकर्म करइ सुबाहु, बाहुबल बांधइ सो साहु ।।२।। पीढ-महापीढ दोइ, करइ अदेखाई५ सोइ। स्त्रीकर्म तेणइए बाधिउं, करिसं आपणुं अलाधउ६ ।।३।। छट्ठउ से(श्रे)यांसजें जीव, अनशन करीअ अतीव । हऊआ अनुत्तरि सुरवर, तिहां आयु तेत्रीससागर ||४||
॥ ढाल-११ ।। जंबूअदीवह भरहखंडि, पर्वत वैताढ्य छइ नामू ए !! तेहथी दक्षिण दिसि भणी, सात कुलगर केरां ठामू ए 11१।। विमलवाहन पहिलुं हूयउ, चक्षुखेमा-जसवंत नामू ए। अभिचंद्र-प्रसेनजित सही, मरुदेवा छठो अभिरामू ए ॥१२॥
नाभि कुलगर छइ सातमु ए, मरुदवा तसु घरिनारी ए। रूपसोभागइय ए आगली, सीलवति अनइ सदाचारी ए !३!! वइरनाभ जीव ते सुर चवि, आसाढी चउथि अंधारी ए ! उत्तराषाढि नक्षत्रि थयइ, मरुदेवा कूक्षि अवतारी ए ||४|| माझिम५७ रयणी नी(नि)द्रभरि, देखइ सुपना दस-च्यारु ए। प्रभाति ऊठीअ प्रिय कन्हइ, पूछइ वरसपन विचारू ए ||५||
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