Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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|| ढाल जलहीनु //
इंद्र कहइ इंद्राणीअ, वेग लइ बाहिरि आवु ।
अम्ह ऊभा घणीवार थई, काई तुम्हे विलंब करावु ||१||
तोरणि आव्या वरराय, मोतीयाथाल
वधावु । आघउ दिउ अरहंतनइ, आरण करण करावु ||२||
ता इंद्राणी धसमसी, वेगि लइ बाहिरि पुहुता । सोवनकरवी नीर भरी, लेई आवइ गहगहता ||३||
// ढाल आघो दिइ ||
सितम्बर २०१३
आघो दिइ राणीय इंद्रनी, जिनवर केरइ हाथि । आघो दिइ ऊलट सवि मिली, देवीअ कोडो - कोडि ||१||
आघो दिइ बाहु लोडावती, करवीअ लेईअ सारो । आघो दिइ उत्तरनइ दक्षण, करि लूणऊतार तइ वारो ||२||
|| ढाल - वडउ नेसालीउ ए ।।
तोरणि जिणवर पुखी ( ख ) या ए, घटि जहलइ करी साहि ( ? ) 119|| इंद्राणी जिण ताणीया ए. आणीआ माहिरा माहि
त्रिभुवन सहु हरखीउ ए ||२||
पाए सराव भंजावीजं ए, बइठा मंडप हेठि । इंद्राणी - इंद्र ब्राह्मणनइ रूपि थया ए. साधी लगननी वार । हाथमेलावडुं तिहां हऊउ ए, मरुदेवी हरख अपार ||३||
धवलमंगल गाइ अपच्छरा ए. सांभलइ देव असंख ||४||
|| ढाल - घोडीनु || || एक धन-धन रे घोडलडी ||
एक धन-धन रे माडीनी कूख, जिणइ एहवर जायु । जिण - जिण वलइ रे सुणु सहीअर, बहिन तु जगत्त उच्छाहिउ ||१||
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एक धन-धन रे श्रीनाभिनरिंद, जस घरि एह आयु | जिणि आविइ आविइ रे, धन- कनकह कोडि मंदिर भरायु ॥२॥

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