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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || ढाल जलहीनु // इंद्र कहइ इंद्राणीअ, वेग लइ बाहिरि आवु । अम्ह ऊभा घणीवार थई, काई तुम्हे विलंब करावु ||१|| तोरणि आव्या वरराय, मोतीयाथाल वधावु । आघउ दिउ अरहंतनइ, आरण करण करावु ||२|| ता इंद्राणी धसमसी, वेगि लइ बाहिरि पुहुता । सोवनकरवी नीर भरी, लेई आवइ गहगहता ||३|| // ढाल आघो दिइ || सितम्बर २०१३ आघो दिइ राणीय इंद्रनी, जिनवर केरइ हाथि । आघो दिइ ऊलट सवि मिली, देवीअ कोडो - कोडि ||१|| आघो दिइ बाहु लोडावती, करवीअ लेईअ सारो । आघो दिइ उत्तरनइ दक्षण, करि लूणऊतार तइ वारो ||२|| || ढाल - वडउ नेसालीउ ए ।। तोरणि जिणवर पुखी ( ख ) या ए, घटि जहलइ करी साहि ( ? ) 119|| इंद्राणी जिण ताणीया ए. आणीआ माहिरा माहि त्रिभुवन सहु हरखीउ ए ||२|| पाए सराव भंजावीजं ए, बइठा मंडप हेठि । इंद्राणी - इंद्र ब्राह्मणनइ रूपि थया ए. साधी लगननी वार । हाथमेलावडुं तिहां हऊउ ए, मरुदेवी हरख अपार ||३|| धवलमंगल गाइ अपच्छरा ए. सांभलइ देव असंख ||४|| || ढाल - घोडीनु || || एक धन-धन रे घोडलडी || एक धन-धन रे माडीनी कूख, जिणइ एहवर जायु । जिण - जिण वलइ रे सुणु सहीअर, बहिन तु जगत्त उच्छाहिउ ||१|| For Private and Personal Use Only एक धन-धन रे श्रीनाभिनरिंद, जस घरि एह आयु | जिणि आविइ आविइ रे, धन- कनकह कोडि मंदिर भरायु ॥२॥
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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