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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ श्रुतसागर • ३२ एक धन-धन रे सुमंगला-सुनंदा, जेणइ एह वर वरीउ। जेणइ परणतइ रे अम्ह मनह, मनोरथ सफलां ए फलीउ !!३।। एक धन-धन रे अयोध्या ठामि, जिहां ए उच्छराण। जिणइ उच्छवि अम्ह सरीआ काज, अनइ जनमप्रमाण ४|| । ढाल-नीमालईए । देव नीमी ठामे करी निमालइ ए, बांधीअ चोरीअ सार। बिहुल जिनवर तिहां बइसारीया ए नीमालइ ए, दक्षण पासइ ए नारि ||१|| पहिलूलु)अमंगलो वरतीइ ए नीमालइ ए. वर-वहू चउरीअमाहि। सोवनकांति सोहामणु ए नीमालइ ए, धनुषसइ पांच सरीर ||२|| बीजूअमंगल वरतीइ ए नीमालइ ए, परणइ रिषभ जिनराज ||३|| दा(दांत जिसा दाडिमकुली ए नीमालइ ए, गजगतिरूप उदार 11४11 त्रीजउमंगल वरतीइ ए नीमालइ ए. पासइ सुमंगला नारिं ।।५।। रूपि जिसी सुरसुंदरी ए नीमालइ ए, सीलसोभागिणि(णी) सार ।।६।। चउथउमंगल वरतीइ ए नीमालइ ए. परणी सुनंदा रंगि 1७1} हंस हरावइ हीडती ए नीमालइ ए, जाणइ अपच्छरा अंगि 11८11 च्यारइमंगल वरतीयां ए नीमालइ ए, इंद्र ते प(पु)रोहित वेसि ।।९।। सुनंदा-सुमंगला थापीया ए नीमालइ ए. जिन तणइ डावइ पासि ।।१०।। ॥ ढाल-वइरसेन व्रतलीउए ।। अगनिनइ दिइ प्रदक्षणा ए, इंद्र मागइ जिन कह्नइ दक्ष(क्षिणा ए ।।१।। तिहां स्वामीइ अविहड धन दीउं ए, श्रीसमकित निर्मल सुरि कीउं ए ||२|| सुरवर सहू थया साखीया ए, वर-वहूअ सहित जब निरखीया ए ।।३।। इंद्र कंसार मंगावीउ ए, इंद्राणी वेगइ आणीउ ए ||४|| For Private and Personal Use Only
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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