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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरनर - किंनर इम भणइ, धन ए नारि रतन्न । जेणइ ए एह वर पामीउ, त्रिभुवननायक जिन्न ॥२॥ || ढाल - कंसार // जिन आगलि थाल अणावीउं, ते सोवन रतन जडावीउ ||१|| साकर घी मोदक मेलीइ, माहि घणुं अमृत भेलीइ ||२|| कंसार कपूरनं वासीइ, वर आगलि थाल ते मेल्हीइ ||३|| इंद्राणी बोलइ हरखसिउं, जिमु सुनंदा - सुमंगला युगादिसिउं ||४|| इंद्र कंसार अभिमंत्रीउ, श्रीऋषभ जिणंद पवित्रीउ ||५|| तिहां इंद्रनी डाढडी आगलइ, सुर-किंनर सहू जोवा मिलइ ||६|| इम इंद्रिइ जिन परिणावीआ, दोई कन्या लई घरि चालीआ | १७ | || ढाल चंदलानु || चांदलु सोभ [इ] ए पूनिमि, जेहवु आसो मासि । तिम जिनवर दोइ नारिसिउं, आवइ निजआवासि ||१|| मरुदेवी हरखिइं गहबरी, आवी आंगण बारि । आछण" पाणी छंडावती, लूण ऊतारइ ए सार ||३|| नाभि कुलगर रंगि ऊठीआ, दिइ आलींगण पुत्र ! हरखि उच्छंगि बइसारीआ, श्रीजिनऋषभ पवित्र ||४|| पंच विषयसुख भोगवइ. पूरइ सजननी आस । सकललोक उलग करइ, स्वामी लीलविलास ||५|| || ढाल घोडीउ ।। सितम्बर २०१३ For Private and Personal Use Only . एक दिनि युगलीया बोलइ रे, प्रभु कोइ नही तुम्ह बोलइ रे ||१|| तुम्हे लिउ राजउ भार रे, जिम अम्हे टलु निरधार रे ||२|| तु कहइ स्वामी विनीत रे, राजि ठवु नाभितात रे || ३ || तु ते नाभिनइ याच रे, नाभि कहइ निजवच्छ रे ।।४।।
SR No.525282
Book TitleShrutsagar Ank 2013 09 032
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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