Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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सितम्बर - २०१३ धन-धन वज्रजंघ नरवरु, धन ते श्रीमती नारि । रिषभ तणइ घरि जे हुस्यइ, श्रीश्रेयांसकुमार ||२|| || द्रूपद ।। स्वयंप्रभा जीव ते अवतरिउ, नयरी पुंडरीगिणीमाहि! वइरसेण चक्रवर्ति घरि, श्रीमती कुंअरि जाय ||३11
धन-धन वज्रजंघ... कुमरी पूरवभव सांभरिउ, प्रीयसिउं प्रेमअपार । पूरवभव कंत झु(जो) मिलइ, तु परणिसि सुविचार ||४||
धन-धन वज्रजंघ... करीय प्रतिज्ञा मूनि रही, धावि" करिउ उपाय] पटि लखी पूरवभवचरी, लहिउ वज्रजंघराय ।।५।।
धन-धन वज्रजंघ... हरखिइ ते बेहु परणाविआ, पुहुता निज पुरि आप! चडतइ ए पखि जिम चंदलु, तिम वाघिउ तेज प्रताप ! ६ }।
धन-धन वज्रजंघ... ।। ढाल-स्वामीअ सपन संभालीइए । वइरसेनराय व्रत लीउं ए, निज पुत्रनइं राज सयल दीउं ए तीर्थंकर पद पामीआ ए, आठकर्मना वइरी नामीआ ए ।।१]| पुत्र ते परबलि राहाविउ(?) ए, तव वनजंघराय बोलावीउ ए| चतुरंगबल लेई चालीया ए, तव वइरीअ सवि नासी गया ए 11२।। वलतां मुनिवर वांदीआ ए, दोइ केवली मनि आणंदीआ ए! श्रीमती बंधव ते बहु ए, वांदीनइ चालीआ ते सहू ए ।।३।।
।। ढाल-सरसति सामिणि करिउ पसाउ ।। मारगि नरवर राणीय साथि ए, जंपइ ए इसिउंअ वइरागसिउं ए। धन एह मुनिवर नाहना लहूअडा, चारित्र पालइ ए भावसिउंए ।
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