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श्रुतसागर - ३२ आ कृतिनी रचनाना फळ स्वरूपे भवो भव परमात्मानी सेवा अने परमात्मानी भक्ति मांगे छे. आ धवलनी रचना करता जे कांई विराधना थई होय तेनी क्षमा मांगी आ कृतिनुं समापन करे छे. कर्ता परिचय:
कृतिनी छेल्ली कडीओमां मळता सेवक शब्द अनुसार आ कृतिना कर्ता सेवक होवानी संभावना छे. कृतिनी १७मी ढाळनी छेल्ली कडीओमां वपरायेल .......लक्ष्मीत' सागर आ पदथी एमना गुरु तरीके लक्ष्मीसागरसूरि महाराज होवानी संभावना व्यक्त थाय छे. आवा ज उल्लेख वाळी जै.गू.क(द्वितीयआवृत्ति)मां भा. पना ४८२मां पेज उपर नोंधायेली रचना शालिभद्रफागुना अंते पण सेवक शब्दनो उल्लेख मळे छे. जो के ए कृतिमां लक्ष्मीसागरसूरि महाराजना नामनो स्पष्ट उल्लेख मळे छे.
जै.गू.क.नी नवी आवृत्तिमां आ कृतिकर्ता श्रीवंत साथे नोंधायेली छे. पाठांतरमां मळता अंतिम वाक्यमां श्रीवंतना नामना उल्लेखथी आ कृति श्रीवंतना स्थाने मूकाई होवी जोईए. ज्ञानमंदिरमां आ कृतिनी ८ थी अधिक हस्तप्रतो छे. एमांनी केटलीक प्रतो तो कृति रचनाथी आसपासना समयमा लखायेली छे. आ दरेक प्रतोमां कर्ताना नाम तरीके सेवकनो ज उल्लेख मळे छे. आ कृतिना कर्ता तरीके सेवकने गणवा के श्रीवंत लेवा ए बाबते विद्वानो जणावे ए ज आशा... प्रत परिचय :
आ कृतिनी हस्तप्रत अमारा ज्ञानमंदिरमा १४०५ नंबरना क्रमांक पर नोंधायेली छे. आ प्रतमां कुल १५ पत्रो छे. अने २६४११ एनुं परिमाण छे. एमां १२ लाईनमा ३६ जेटला अक्षरो नोंधायेला छे. प्रतना मध्यभागमां चोखंडु छे. एमां चार अक्षरोनुं आलेखन थयुं छे. प्रतमा खने माटे षनो उपयोग थयो छे. क्यांक पडिमात्रानो पण उपयोग थयो छे. थोडा लेखनदोषो होवा छता आ प्रत पाठनी द्रष्टिए घणी सारी छे. अक्षरो सुंदर छे. क्यांक क्यांक प्रतिलेखक द्वारा कडी क्रमांक आपवानो रही गयेल छे. पाठनो अन्वय करता पदच्छेद चिह्न आपेला छे. अंक अने दंड माटे लाल स्याहीनो उपयोग करवामां आव्यो छे. तेमज पत्र क्रमांक स्थान पर विविध रेखा चित्रनुं चित्रण मळे छे. प्रतना पहेला पाने अने छल्ला पाने सुंदर चित्र पुष्ठिका चित्रित छे. प्रतनी चारे बाजुनी किनारीओ अधिक उपयोगना कारणे खंडित थयेली छे. खंडित के बेटित पाठ अने गाथाओने योग्य चिह्न आपी बाजुमां के हांसियामां उतारेली जोवा मळे छे. पतिलेखन पुष्पिकाना आधारे आ प्रत वि. सं. १६१२मां पोष सुद पना गुरुवारना लाभपुरमा श्रावक लाडाना पठन माटे लखायेली छे.
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