Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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सितम्बर - २०१३ क्षमा सरसउ तप करइ, लिइ विशुद्ध आहार। एक ध्यानि अरिहंत वसइ, वादी मोडइ माण। तेणि करी दिणयर समउ साहेलडी रे दुरिअ-तिमिर-हरनार 11६२]]
।। ढाल-फागनु ।। अहे मयणराय इम बोलइ ए, तोलइ ए कुण मुणिं(णी)द। ताजी हरिहर मुनिवर, किंनर दिणयर इंद ||६३।। ब्रह्म महेसर ईसर, पारासर रहनेमि, आपणी आण मनावीअ, आवीअ जीपुं खेवि३७ मझ आगलि कुण मुनिवर, सुरवर सेवक जास, मयणदूत तव पाठवइ, आवइ मुनिवर पासि ।।६४ 11 यौवनदूत पठावीउ, आवीउ मुनिवर पासि। मान मुंकी तुं मुनिवर, आदरि मयण- वास !६५ ।। हसी करी मुनिवर जंपइ ए, कंपइ ए सेस पायालि । जई मयणनइ वीनवे, आवीउ तुझ खइकाल [६६ ।। मनिवर करइं सजाई, लाई नहीअ लगार | संग्राम हुइ सजाई", लाई मला इसि वार ||६७।। ज्ञानटोप आरोपइ ए, थापइ ए सीलसन्नाह। तप-जप अंगारगाउलि लिइ, मुनि धरी उछाह 1६८ ।। छत्र चारित्र तुरंगम, आगम उपशमसार । सेनानी मुहवडि१ कीउ, क्षमाखडग लिइ धार ||६९।। सामंत दीसइ रूअडा, वडा महाव्रत पंच । दस विध संयम उद्भट, सुभट२ करइं नही खंच ।।७० ।।
11 ढाल ।
मयणराय मनि कोप धरीनइ, मस्तकि मायाटोप। अंगारगाउलि क्रोध लोभ, बे नारी कुंजर आरोप ।।७१।।
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