Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर - ३२ इक झूडइ इक बूडइ, समरंगणि साम्हइ जाइ जीतु।
मयण मनाविउ आण (आंकणी) आठ मद हुआ सुभट सजोडा, घोडां इंदिय पंच । असत्यवाद करवाल ऊलालीअ, युद्ध कीउ प्रपंच ।।७२।। मछर तिहां सेनानी थापीअ, आपीअ दंभ.....। प्रमादपुरूष सेलहतुं सारइ, सात व्यसन झूझार ||७३|| वीर धीरनई बीडा आपइ, बिहुं दलि मान अपार। सज्ज थई समरंगणि आवइ, खेहिंई छाहिउ दिणकार 11७४।। एक एकनइं हणवाना, कइ मूंकइ खडगप्रहार। एक छेक थई टार टंपावई५, सोहावइ तिणि वार 1७५।। बिहुं दलि बहुला ढोल ध्रसूकइ, चूकई इक हथीआर। सिरि विण इक धड-धडह झूझइ, सीजइ इक तिणिवार ७६|| तुरि४७ तिविल८ कंसाला, वाजइं भाजइं सुभट समूह । वक्र चक्र ताकीइ मूंकइ, भूकओ९ थाइ देह ||७७)। इणि परि बिहुं दलि झूझ करतां, मयण मूकाविउ बाण । भूजबलि नीतु मयणराय तिहां, काज चडिउं प्ररमाणि 1७८ ।।
।। ढाल ।।
मुनिवरि जयसंपद वरी ए, तव वाजइ दुंदुभि दड-दुडि ए। धवल-मंगल दिइ सुंदरी ए, वर नारि वधावइ मिली-मिली ए |७९ ।। श्रीसोमजयसूरिसीसू ए, मुनि प्रतपउ कोडि वरीसू ए। अहवि दीइं आसीसू ए, जस प्रणमइ नरवरसीसू ए 11८०।। सुहगुरि गुणवंत जाणीउ ए, जव गिरूइ श्रीसंघि वखाणीउ ए। साह पुंजइ नीय मनरूली ए, वीनवीआ सहिगुरू संघि मिली ए ।।८१॥ पाटणि नयर मझारू ए, वर ओसवंश सिणगारू ए। वित्त वेचइ अपारू ए, साह पुंजउ अति सुविचारू ए ||८२।।
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