Book Title: Shrutsagar Ank 2013 09 032
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३२ १७ श्रीइंद्रनंदि गुरू ए, शीलई वयरकुमार। भविअकमलबोहणदिणकार, वाणी सेलडी ए, मोहणवेलडी ए १९८ ।। । ढाल ।। देस-विदेसई विहरई ए, बोहइं भवीअणथाट। सोरठ सुराठ सवालख, मरहउ मगध मुरारि ||९६ ।। गूजर कंकण कलहथ मालवउ अंग तिलंग। मरूमंडल जांगल वली, अंकज अपद पलंग ।।९७।। दक्षिणदेसे विचक्षण, वादी प्रणमइ ए पाय। नमइं नरेसरकोटी, कोटी धज नरराय १९८।। महीअलि महिमाआगर, गणधर गुणअसंख। सहस जीभइ नइ मुखि हूइ, तोइ न लाभइ ए संख ।।९९ ।। श्रीइंद्रनंदिसूरि मुनिवर, पायकमलि अलिअवास । सीस लेस इम वीनवइ, पूरित मझ मन आस ।।१०० ।। शशहर मेरू महीधर, दिणयर ग्रहगण वास। तां लगइ पूरउ सुहगुरू, श्रीसंघ केरी आस ।।१०१।। संवत पनरच्यालीस(१५४०), ऊपरि सुंपीअ............(?)! फागुण सुदि पंचमि दिनि, वीवाहलउ विख्यात ।।१०२11 भावानंद पंडितपवर, पाय नमी लास* मझारि । वीवाहलउ ऊमाहलउ करइ, नव-नव रसि सार ||१०३!! मणइ गुणइं नर-नारीअ, हीअडलइ घरी आणंद । विनय विवेक मंगल वली, तेह घरी लच्छीवृंद ।।१०८ ।। ।। इति श्रीइंद्रनंदीसूरीणां वीवाहक: ।।छ। For Private and Personal Use Only

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