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सितम्बर - २०१३ चरणकमलआरंभ, जिस्यां हुइ केलिना थंभ। धुरि लगइ सहजि सुशील, करइ नितु यवनवी लील ||२४||
।। राग - सोधडउ ।। पंच वरीसउ जव हुउ हो, कुंअर दुर्लभराज। सज्जन सहूको हरखीउं हो, नेसालइ वरराज किं ||२५।। विद्या अभ्यसइ रे, बोलइ सुललित वाणि कि । सुरजन मोहइ रे, रूपि मयणअवतार कि दूलओ सोहइ रे, रंजवइ बालगोपाल कि (आंकणी) लखण छंद प्रमाण भणी हो, लाधउ विद्यापार | उच्छवि नीय घरि आविउ हो, विद्यातणुं भंडार कि ।।२६।।
विद्या अब्यसइ रे.... तात मात चिंतावीआ हो, जोइ सुकुली(लि)णी बाल । चंपक साह ऊमाहलउ हो, परिणावी नीय बाल कि ।।२७।।
विद्या अभ्यसइ रे... सुगुरु तणी सेवा करइ हो, दूलउ अति सुकुमाल। जिनवर पूजइ मनि रूली हो, लहूउ लीलविलास कि ||२९ 11
विद्या अभ्यसइ रे... आगमआगर अतिहिं भला हो, सिरिउदयनंदिसूरिराय सेवा करतां उपनउ हो, लेवा संयमभाव कि ३०!!
विद्या अभ्यसइ रे...
। ढाल - धउलनउ ।।
बे कर जोडी वीनवइ, संभलउ तातनइ माता संयमलच्छी आदरूं, मझ मति एहीय वात ।।३१।।
ए संसार असारडइ, सार छइ संयमरयण । जिणि करी शिवपुरि जाईइ, साचुं करउ मझ वयण ।।३२।।
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