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श्रुतसागर - ३२
आप अरथि सहू आवीउं. सगांसणीजांइ१६ एह ! पूत्र कलत्र अनइ बांधव, आपणु नही ए देह ३३|| जीवी यौवन ए अछइ, जेहवउ डाभि जलबिंद! विषय तणां सुख संमुख, जाणे मधुनउ बिंद ||३४।।
II ढाल ।।
तात वयण तव सांभली, कुंअर सुकुमाल संयमअवसर ए नही, सुखभोगवि बाल ||३५|| मात सीतादे बूझवइ, गहबरीउ१९ चीत । वछ नही तुझ वेसडउ०, इम कहइ मावीत्र । लघु वय वेसिइं लहूअडइ, कंदली परि देह! आ आ कह किम छांडीइ, विषयसुख एह ३६ ।। मात सीतादे... तातवचन हीअडइ धरी, मनि आंणिउ उछाह । पाणिग्रहण करवउं सही. लिइ नरभव लाह ||३७।। मात सीतादे... दीक्षाकन्या आदरी, हइ दोहिलं देव। (सालडु) वर जलि भीजीइ, गाजइ गुहिरू मेह ।।३८।। मात सीतादे... पगि-पगि कादवडो हिवउ२, ताढा२३ वाजइं वाय। घरि-घरि भिक्षा मागवी, वछ दोहिलं काय [३९।। मात सीतादे... सीअल भोअण" होअसइ, नही अधिकुं वेस। जरवाणी पाणी पीइवउं, करवउ गुरूआदेस ।।४०।। मात सीतादे... ऊन्हालइ दिणवर तपइ, वाजइ ऊन्हीअ६ लूण । तप-जप-संयम पालिवउं, संथारउ भूअ ।।४१ ।। मात सीतादे... सीआलइ सीई करी, वच्छ पडिसइ तुषार। वनमाहे होसिइ वासडउ. कुण करिसिइ सार ।।४२|| मात सीतादे... ऊन्हां पाणी विहरीअ, भोअणह असार । आतापन अति दोहिली, काकरि२९ संथारू ||४३|| मात सीतादे...
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